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कविता

कोई एक जीवित है

लीलाधर जगूड़ी


आततायी डरा हुअ है कि कोई एक जीवित है
कोई एक जीवित है
कोई एक स्‍त्री। कोई एक पुरुष
कोई एक बच्‍चा कहीं जीवित है

और इस प्रकार अनेक मनुष्‍य जीवित हैं

आतंकित मारा जाता है सभय अकेला
विवेक भी डर जाय ऐसी मौत
उद्देश्‍य मारना नहीं डर जीवित रखना है
जो भी जाति हो डरती रहे जीवित रहने से
और अपने को मात्र मनुष्‍य जाति कहने से

अत्‍याधुनिक डर आता है बाजार से निकलकर
अनजाना एक व्‍यक्ति डरता है किसी की जान पहचान से

फिर भी आतंकी डरा हुआ है कि कोई एक जीवित
हजारों की तादाद में जीवित है।

 


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